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गुरुवार, जून १७, २००४

महंगाई

पहले से ही करों के बोझ से पिसी आम जनता पर मनमोहन सरकार द्वारा (पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि के कारण) पड़ी मार से उपजी कवि व्यथा का प्रतिफल यह कुण्डलिया छन्द :

महंगाई इतनी क्यों बढी,ये समझ न पावे कोय
बहुत अधिक गुस्सा आवे, मन का आपा खोय।
मन का आपा खोय,पर कर कोई कछहुं न पावे
ज़ोर-ज़ोर से हर कोई चीखे,चिल्लावे और गावे।
कहत प्रतीक यही,सबने लेख लिखे कविता गायी
कहत-सुनत जीवन बीता,पर कम न हुई महंगाई।

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