चंद्र ग्रहण 2019

Author: - | Last Updated: Fri 21 Sep 2018 3:27:18 PM

चंद्र ग्रहण हिन्दू धर्म में हमेशा से लोगों की उत्सुकता का विषय रहा है। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार राहु और केतु जब चंद्रमा को निगल जाते हैं तो चंद्र ग्रहण होता है। दरअसल इसके पीछे एक समुद्र मंथन की एक रोचक कहानी जुड़ी हुई है। चंद्र ग्रहण हर साल घटित होते हैं, कभी इनकी संख्या दो तो कभी 3 होती है। साल 2019 में कुल 2 चंद्र ग्रहण दिखाई देंगे। इनमें पहला चंद्रग्रहण 21 जनवरी को घटित होगा, जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 16 व 17 जुलाई की मध्य रात्रि में दिखाई देगा। आइये पढ़ते हैं साल 2019 में घटित होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण के समय, तारीख और दृश्यता से संबंधित जानकारी।

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2019 में पहला चंद्र ग्रहण

इस साल का पहला चंद्र ग्रहण 21 जनवरी को घटित होगा। यह चंद्र ग्रहण पुष्य नक्षत्र और कर्क राशि में लगेगा। जिस राशि और नक्षत्र में ग्रहण लगता है उस राशि व नक्षत्र से संबंधित लोगों पर ग्रहण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए इस चंद्र ग्रहण का असर कर्क राशि और पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों पर होगा। इन लोगों को ग्रहण के समय विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होगी। हालांकि यह चंद्र ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा, इसलिए यहां पर इसका धार्मिक महत्व और सूतक मान्य नहीं होगा।

दिनांक समय प्रकार दृश्यता

21 जनवरी 2019

08:07:34 से 13:07:03 बजे तक

पूर्ण चंद्र ग्रहण

मध्य प्रशांत क्षेत्र, उत्तरी/दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका

2019 में दूसरा चंद्र ग्रहण

2019 में दूसरा चंद्र ग्रहण 16-17 जुलाई की रात्रि में लगेगा। खास बात है कि यह ग्रहण भारत समेत अन्य एशियाई देशों में दिखाई देगा, इसलिए इस ग्रहण का सूतक माना जाएगा। यह चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में लगेगा और धनु व मकर दोनों राशि के जातकों पर इसका प्रभाव होगा। इसलिए बेहतर होगा कि इन राशि और नक्षत्र से संबंधित लोग चंद्र ग्रहण के समय सतर्क रहें और ज्योतिषीय उपाय करें।

दिनांक समय प्रकार दृश्यता
16-17 जुलाई 2019 25:32:35 से 28:29:50 बजे तक (भारतीय समयानुसार, 01:32:35 से 04:29:50 बजे तक) आंशिक चंद्रग्रहण

भारत और अन्य एशियाई देश, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया

चंद्र ग्रहण ( 16-17 जुलाई) के सूतक का समय

सूतक प्रारंभ

16 जुलाई को 15:55:13 बजे से

सूतक समाप्त

17 जुलाई 04:29:50 बजे

चंद्र ग्रहण का सूतक

ग्रहण के सूतक का मतलब उस अशुभ समय से है जब ग्रहण के दौरान प्रकृति का वातावरण दूषित हो जाता है। इस परिस्थिति से स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए जप-तप और ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। चंद्रग्रहण का सूतक सामान्यतः ग्रहण आरंभ होने से 9 घंटे पूर्व शुरू हो जाता है और ग्रहण की समाप्ति पर स्नान के बाद खत्म हो जाता है। सूतक काल में मूर्ति पूजा, मूर्तियों का स्पर्श, भोजन बनाना व खाना आदि कार्यों को करना निषेध माना जाता है। ध्यान रहे बुज़ुर्ग, रोगियों और बच्चों पर ग्रहण का सूतक प्रभावी नहीं होता है। ग्रहण का सूतक वहीं मान्य होता है जहां ग्रहण दिखाई देता है।

चंद्र ग्रहण के सूतक में क्या न करें

  • इस समय में न भोजन बनाएं और न खायें। हालांकि वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती महिलाएं आहार ले सकती हैं।
  • ग्रहण के समय गर्भवती महिलाएं काटने, छीलने या सिलने का कार्य बिल्कुल न करें।
  • ग्रहण को नग्न आंखों से न देखें।
  • भगवान की मूर्ति और तुलसी के पौधे का स्पर्श न करें।
  • ग्रहण पूर्व से भोजन, जल और दूध में तुलसी दल अवश्य डालें।

ग्रहण का गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव

हिन्दू धर्म में ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि ग्रहण के समय वातावरण दूषित हो जाता है और उसका असर गर्भ में पल रहे उनके बच्चों पर पड़ सकता है। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, काटना या छीलना जैसे कार्य नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों के अंगों को क्षति पहुंच सकती है।

चंद्रग्रहण के समय क्या करना चाहिए

  • ग्रहण के समय जप-तप और ईश्वर का ध्यान करें।
  • ग्रहण समाप्ति के बाद घर में गंगाजल का छिड़काव करें और घी व खीर से हवन करें
  • ग्रहण के दौरान चंद्र मंत्र “ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् ” का जप करें।
  • ग्रहण समाप्ति पर स्नान के बाद भगवान की मूर्तियों को स्नान कराएं और उनकी पूजा करें।
  • ग्रहण के बाद ताजा भोजन बनाएँ और खाएँ।

चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा

एक धार्मिक कहानी के अनुसार जब समुद्र मंथन के समय अमृत को लेकर देवता और दानवों में विवाद हुआ, तो इस विवाद के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक सुंदर कन्या का रूप धारण किया। मोहिनी ने दानवों को बहला फुसलाकर एक पंक्ति में बिठा दिया, वहीं दूसरी पंक्ति में देवता बैठ गये। मोहिनी ने पहले अमृत पान देवताओं को कराया। इस दौरान एक असुर इस चाल को समझ गया और चुपके से देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गया। वहीं सूर्य और चंद्रमा ने देवों की पंक्ति में बैठे राक्षस को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से तुरंत उस दैत्य का सिर धड़ से अलग कर दिया लेकिन तब तक वह असुर अमृत का सेवन कर चुका था। जिसके प्रभाव से सिर और धड़ दोनों अलग-अलग होकर अमर हो गये। उस दैत्य के यही सिर और धड़ राहु व केतु कहलाये और नवग्रहों में छाया ग्रह के नाम से स्थापित हो गये। कहते हैं कि राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा से बैर रखते हैं व उन्हें निगलकर शापित करते हैं। इस वजह से सूर्य व चंद्र ग्रहण होता है।

आशा करते हैं चंद्रग्रहण पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोकैंप की ओर से उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएँ!

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