होली 2020

Author: -- | Last Updated: Thu 24 Jan 2019 9:19:34 AM

हिन्दू पंचांग की मानें तो होली का पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसके अलावा यदि प्रतिपदा की तिथि दो दिन पड़ रही हो तो पहले दिन को ही धुलण्डी (वसन्तोत्सव या होली) मनाया जाना शुभ माना जाता है। इस त्योहार को बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए भी मुख्य तौर पर देशभर में मनाते हैं।


साल 2020 में होली 10 मार्च को सम्पूर्ण भारत में मनाई जायेगी। होली एक धार्मिक हिंदू त्यौहार है, जो भारत वर्ष में रंगों के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा यह नेपाल और दुनिया के अन्य देशों में भी मनाया जाता है जहाँ हिंदू या भारतीय मूल के लोगों की आबादी रहती है। होली रंगों का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है। यह पर्व हर साल फाल्गुन के महीने में मनाया जाता है। यह बहुत ख़ुशी और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है। होली के दिन लोग एक-दूसरे को रंग, गुलाल और अबीर लगाकर गले मिलते हैं और बधाई देते हैं। अतः यह प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है।

होली में लोग ढोलक जैसे वाद्य यंत्रों के साथ फाल्गुन गीत (फगुआ गीत) गाते हैं। इस विशेष दिन पर गुजिया, मिठाई, चिप्स, पापड़, हलवा, पानी पुरी, दही बड़ा जैसे विशेष पकवानों को खाया जाता है। खासकर बच्चे और युवा इस उत्सव का बहुत साहस और खुशी के साथ इंतजार करते हैं और होली खेलने के लिए रंग, गुब्बारे, बाल्टी, पिचकारी से जमकर होली खेलते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां की अपनी अलग धार्मिक पहचान भी है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है।

होली का पर्व क्यों मनाते हैं ?

होली मनाने के पीछे कई प्राचीन मान्यताएं हैं, जो भारतीय परंपराओं में रची बसी हैं। होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है। यह परंपरा कई युगों से चली आ रही है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था। एक बार उसे अपनी ताक़त पर घमंड हो गया और वह अपने पूरे राज्य में जबरन भगवान की पूजा बंद करवाकर स्वयं की आराधना करवाने के लिए प्रजा को बाध्य करने लगा। लेकिन हिरण्यकश्यप का अपना पुत्र प्रहलाद भी भगवान विष्णु का परम भक्त था।

हिरण्यकश्यप के लाख मना करने के बावजूद भी प्रहलाद ने भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी। जब प्रहलाद ने अपने पिता की एक भी नहीं सुनी तो पिता हिरण्यकश्यप प्रहलाद की पूजा भंग करने की नई-नई तरकीब निकालने लगा था। इसके लिए उसने पुत्र प्रहलाद को मारने की भी कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हर बार बच जाते थे। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को को मारने के लिए अपनी बहन होलिका का बुलाया। होलिका को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था, जिससे अग्नि उन्हें जला नहीं सकती थी।

होलिका को शिव जी ने एक ऐसी चादर दी थी जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि का असर नहीं होता था। हिरण्यकश्यप के कहने पर एक दिन होलिका चादर ओढ़कर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा के चलते वह चादर प्रहलाद पर आ गई और होलिका ​अग्नि में जलकर राख हो गई। इसीलिए आज भी होलिका का दहन कर ऐसी दुर्भावना का अंत किया जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार में हिरण्यकश्यप का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिये थे।

होली के पौराणिक तथ्य

भारत में होली का त्यौहार वैदिक काल से ही मानाया जाता रहा है। इसका उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली का त्यौहार नए संवत् की शुरूआत के तौर पर देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन पृथ्वी पर पहले मानव मनु का जन्म हुआ था। इसी दिन कामदेव का पुर्नजन्म भी हुआ था। इसी दिन विष्णु भगवान ने नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्य कश्यप नाम असुर का वध किया था और अपने भक्त प्रहलाद को दर्शन दिया था। इस दिन के खास होने की एक वजह और भी है। होली का उत्सव भगवान कृष्ण भी बड़े धूमधाम से मनाते थे। यह परंपरा कृष्ण की नगरी मथुरा में आज भी देखने को मिलती है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण बाल्य काल से ही यहां रंगोत्सव मनाते थे। राधा के साथ-साथ गोपियों के साथ होली मनाते थे। मथुरा में आज भी फूलों की होली मनाई जाती है। जबकि राधा के गांव बरसाने में लट्ठमार होली को देखने दुनियाभर के लोग आते हैं। यहां की होली का जिक्र ग्रंथों में देखने को मिलता है। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए भारतीय समुदाय आज भी रंगोत्सव का पर्व धूम धाम के साथ मनाते हैं। यह पर्व प्रेम का पर्व है, जिसमें लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं।

देश के कोने-कोने में मनाया जाता है होली का पर्व

होली का यह त्यौहार देश के कोने-कोने में मनाया जाता है। हालांकि हर जगह होली मनाने की मान्यता अलग-अलग है लेकिन कहीं न कहीं इन सभी मान्यताओं में समानता देखने को मिलती है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लोग रंगों का त्यौहार धूमधाम से मनाते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, बिहार आदि राज्यों में होलिका दहन के अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है। यह परंपरा इन राज्यों में ज्यादा है। गुजरात और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच रंगों का यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ लोक गीतों के माध्यम से लोग अपने प्रभु को याद करते हैं। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के रूप में रंगोत्सव मनाने की परंपरा है। इसी प्रकार देश के बाकी राज्यों में भी रंग के इस उत्सव को लोग उल्लास के साथ मनाते हैं।

होली में बरतें सावधा​नी

होली का त्यौहार खुशियों का त्यौहार है। हालांकि रंगों के इस त्यौहार में सावधानियां बरतने की जरूरत है वरना आपकी खुशियों में रूकावट आ सकती है। आजकल देखा जाता है मस्ती भरे इस त्यौहार में लोग कई गलतियां करते हैं, जो नहीं करनी चाहिए। जैसे -

  • रंगों के इस त्यौहार में हमेशा प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करना चाहिए। इससे आपकी त्वचा और आँखें सुरक्षित रहेंगी।
  • कई बार लोग शराब या अन्य मादक पदार्थों का सेवन करने लगते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे आपकी सेहत खराब होती है।
  • कोशिश करें कि इस दिन को सूखी होली के तौर पर मनाएं, यानी अबीर, गुलाल से होली खेलें। पानी का प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में करें।
  • केमिकल युक्त रंगों से बाल, आँख, कान और नाक को बचाएं।

हम उम्मीद करते हैं कि होली से संबंधित हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। हमारी ओर से आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं !

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