Author: Vijay Pathak | Last Updated: Mon 15 Dec 2025 10:28:39 AM
ग्रहण 2026: जब कोई आकाशीय पिंड किसी अन्य ग्रह से आंशिक या पूरी तरह से ढक जाता है, तब ग्रहण लगता है।
ग्रहण तब लगता है, जब किसी खगोलीय पिंड की रोशनी को कोई अन्य पिंड या ग्रह ढक लेता है या जब कोई पिंड या ग्रह किसी अन्य प्रकाश से धुंधला हो जाता है।
सौर मंडल में ग्रह तब लगता है, जब तीन खगोलीय पिंड सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षाओं में एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। अमावस्या के आसपास सूर्य ग्रहण लगता है और पूर्णिमा के आसपास चंद्र ग्रहण लगता है। सूर्य एक प्रकाशमान ग्रह है जिसके चारों ओर सभी अन्य ग्रह घूमते हैं।
चूंकि, ग्रहण का मतलब होता है किसी खगोलीय पिंड की रोशनी या चमक का कुछ समय के लिए धुंधला पड़ जाना इसलिए ग्रहण तभी लगता है जब इन पिंडों की चमक और रोशनी चरम पर होती है।
ज्योतिषशास्त्र में राहु-केतु ग्रहों के बारे में वर्णित है कि सिर राहु और केतु धड़ है जिसे ग्रहण के दौरान सूर्य या चंद्रमा पर प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। पौराणिक कथा में समुद्र मंथन में इसका जिक्र मिलता है। वैदिक शास्त्रों में वर्णित हिंदू कथाओं में इस कहानी का वर्णन मिलता है।
समुद्र मंथन का संबंध सूर्य एवं चंद्रमा को लगने वाले ग्रहण से है। जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन किया, तब उसमें से अमृत कलश निकला। असुरों ने इस अमृत को चुरा लिया। तब भगवान विष्ण ने एक अत्यंत सुंदर स्त्री मोहिनी का रूप धारण किया और असुरों से अमृत कलश वापस पाने के लिए उनका ध्यान भटकाने का प्रयास किया। असुरों से अमृत कलश लेने के बाद मोहिनी ने पहले देवताओं को अमृत पान करवाया। उस समय एक असुर जिसका नाम स्वरभानु था, वह देवताओं के बीच जाकर बैठ गया और उसने भी अमृत का पान कर लिया।
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हालांकि, सूर्य और चंद्रमा की नज़र इस असुर पर पड़ गई और उन्होंने तुरंत भगवान विष्णु को इस छल के बारे में बता दिया। तब क्रोध में आकर भगवान विष्णु ने स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया। तभी से स्वरभानु का सिर राहु और धड़ केतु के नाम से जाना जाने लगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वरभानु को इन दो हिस्सों में ही जीवित रखा गया क्योंकि उसने अृमत का पान कर लिया था और भगवान विष्णु के प्रहार के बाद भी उसका वध करना असंभव था।
इस कथा के अनुसार सूर्य और चंद्रमा से प्रतिशोध लेने के लिए राहु-केतु उन्हें ग्रहण लगाते हैं। इसलिए हिंंदू पौराणिक कथाओं में चंद्र और सूर्य ग्रहण को शुभ घटना नहीं माना जाता है।
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सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन लगता है क्योंकि इस दिन सूर्य अपने उच्चतम स्थान पर होता है। जब सूर्य आंशिक या पूरी तरह से चंद्रमा के पीछे छिप जाता है, तब सूर्य ग्रहण लगता है। इस तरह के ग्रहण के दौरान चंद्रमा का पृथ्वी और सूर्य के बीच आना ज़रूरी है। ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर रहने वाले लोग सूर्य को नहीं देख पाते हैं। निम्न स्थितियों में सूर्य ग्रहण लगता है:
अमावस्या होनी चाहिए।
चंद्रमा का देशांतर राहु या केतु के नज़दीक होना चाहिए।
चंद्रमा का अक्षांश शून्य के आसपास होना चाहिए।
सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन ही लगता है। इस दिन चंद्रमा अदृश्य या सबसे ज्यादा कमज़ोर होता है और सूर्य का प्रकाश एवं शक्ति अपने चरम पर होती है। इसके लिए चंद्रमा का अक्षांश शून्य के नज़दीक होना चाहिए और यह तभी होता है जब चंद्रमा एक्लिप्टिक पर या उसके पास होता है। यह एक संयोग है कि सूर्य और चंद्रमा का कोणीय व्यास एक जैसा होता है। ऐसे में चंद्रमा सिर्फ कुछ मिनटों के लिए ही सूर्य को ढक पाता है।
जब चंद्रमा अपनी शिरोबिंदु पर होता है, तब उसका कोणीय आकार सूर्य की तुलना में थोड़ा छोटा होता है। अपनी शिरोबिंदु पर चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है जिसकी वजह से वह पृथ्वी से देखने पर छोटा दिखाई देता है। तीन प्रकार के सूर्य ग्रहण होते हैं:
जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे ज्यादा नज़दीक होता है, तब चंद्रमा का कोणीय आकार सूर्य से थोड़ा बड़ा दिखाई देता है और पृथ्वी से देखने पर ऐसा लगता है जैसे इसने सूर्य को पूरी तरह से ढक लिया है। इसे कुल सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जब पृथ्वी के सबसे निकट होने पर चंद्रमा का कोणीय आकार सूर्य से बड़ा होता है और उनके केंद्रों को जोड़ने वाली रेखा पृथ्वी की सतह को काट रही होती है, तब ऐसा होता है।
चूंकि, पृथ्वी और चंद्रमा दोनों ही अपनी कक्षा में तेजी से घूम रह होते हैं, इसलिए उन दोनों का एक-दूसरे को काटने का बिंदु भी पृथ्वी की सतह पर तेजी से आगे बढ़ता है जिससे एक संकीर्ण बैंड बन जाता है। कुल सूर्य ग्रहण में इस बैंड को पूर्णता का पथ कहा जाता है और वलयाकार सूर्य ग्रहण में इसे वलयता का पथ कहा जाता है। यह बैंड कभी भी 300 किलोमीटर से ज्यादा चौड़ा नहीं होता है लेकिन इसकी लंबाई हज़ारों किलोमीटर तक हो सकती है।
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यह पट्टी कभी भी 300 किलोमीटर से अधिक चौड़ी नहीं होती, लेकिन इसकी लंबाई हज़ारों किलोमीटर हो सकती है। जिस हिस्से पर पूर्ण छाया पड़ रही होती है, उसे अंबरा कहा जाता है। चंद्रमा की छाया की गति 1800 किमी से 8000 किमी प्रति घंटा हो सकती है जो कि इसकी स्थिति पर निर्भर करती है। इस वजह से पूर्ण सूर्य ग्रहण किसी भी स्थिति में 7.5 मिनट से ज्यादा देर तक नहीं रह पाता है।
जब चंद्रमा सूर्य के सिर्फ एक हिस्से को ढकता है, तब इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जिस हिस्से पर आंशिक छाया पड़ती है, उसे पेनम्ब्रा कहते हैं।
जब चंद्रमा अपने शिरोबिंदु पर होता है और उसका कोणीय आकार सूर्य से थोड़ा छोटा होता है, तब सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा एक काले चित्र की तरह दिखाई देता है और उसके चारों ओर सूर्य के तेज प्रकाश की एक अंगूठी सी बन जाती है। सौर मंडल की इस घटना को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
पृथ्वी के केवल उस हिस्से से सूर्य ग्रहण को देखा जा सकता है जहां पर उस दौरान दिन का समय हो इसलिए सूर्य ग्रहण के दौरान जिस स्थान पर दिन होता है, ये वहीं दृश्यमान होता है।
प्रतिवर्ष सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 38 मिलीमीटर की दर से धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। इसका मतलब है कि लाखों वर्ष पहले कुल सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता था और उस समय वलयाकार सूर्य ग्रहण नहीं होते थे।
इसी तरह ऐसा प्रतीत होता है कि लाखों वर्ष बाद केवल वलायकार सूर्य ग्रहण ही होंगे और पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं लगेगा। यह अवधारणा तभी सिद्ध होगी, जब सूर्य का कोणीय आकार समय के साथ न बदले।
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पूर्णिमा के दिन ही चंद्र ग्रहण लगता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा सूर्य की किरणों से प्रकाशित होकर अपनी पूर्ण रोशनी या चमक बिखेरता है। इस दौरान सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है।
पृथ्वी की छाया चंद्रमा की सतह पर पड़ती है, तब चंद्र ग्रहण होता है और चंद्रमा पर पृथ्वी की पूरी छाया को अंबरा कहा जाता है और आंशिक छाया को पेनम्ब्रा कहा जाता है। चंद्रमा की स्थिति पर पृथ्वी की छाया की कोणीय त्रिज्या चंद्रमा के कोणीय व्यास से ढाई गुना होती है। इस वजह से पूर्ण चंद्र ग्रहण की अधिकतम अवधि 1 घंटे 40 मिनट तक हो सकती है।
चंद्रमा के कक्षीय तल का एक्लिप्टिक के प्रति झुके होने के कारण हर पूर्णिमा या अमावस्या पर ग्रहण नहीं लगता है। चंद्र ग्रहण को पृथ्वी के उस भाग से देखा जा सकता है जहां पर अंधेरा हो अर्थात् जहां रात होती है और वह भी पूर्णिमा की रात हो। यहां भी चंद्र ग्रहण के लिए राहु और केतु चंद्रमा के नज़दीक होते हैं और चंद्रमा का अक्षांश शून्य होता है।
वहीं अगर चंद्रमा का कक्षीय तल एक्लिप्टिक के समांतर होता है, तब हर पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण और हर अमावस्या पर सूर्य ग्रहण ज़रूर लगेगा। चंद्रमा अपने एक चक्कर में दो बार एक्लिप्टिक को पार कर लेता है। ऐसे में ग्रहण लगने की सारी स्थितियां बन जाती हैं।
ग्रहण लगने के लिए चंद्रमा का अक्षांश शून्य के आसपास होना चाहिए और इसकी कक्षा राहु या केतु के नज़दीक होनी चाहिए। जब चंद्रमा का अक्षांश शून्य होता है, तब वह अपने आप ही एक्लिप्टिक पर स्थित होता है। सूर्य और चंद्रमा की कक्षाओं में राहु और केतु केवल इंटरसेक्शन बिंदु ही होते हैं।
जब चंद्रमा एक्लिप्टिक पर शून्य अक्षांश के नज़दीक होता है, तब राहु और केतु की कक्षाओं का चंद्रमा की कक्षा के बहुत निकट होना जरूरी नहीं है क्योंकि यह इंटरसेक्शन बिंदु भी अपनी गति से कक्षा में चलते रहते हैं। चंद्रमा का अक्षांश शून्य होने पर भी यह जरूरी नहीं है कि ग्रहण लगेगा ही क्योंकि उस समय चंद्रमा की कक्षीय स्थिति राहु या केतु के साथ मिल भी सकती है और नहीं भी। ऐसे में राहु और केतु से संबंध होने के कारण ग्रहण की यह घटना हिंदू ज्योतिष में अपना विशेष स्थान और महत्व रखती है।
सूर्य और चंद्र ग्रहण का समय, अवधि और स्थितियां पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की बदलती हुई ज्यामितीय स्थितियों पर निर्भर करती है। ग्रहण के बाद जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा जब अपनी ज्यामितीय स्थिति में वापस आते हैं, तब उसी के जैसा ग्रहण लगता है। इनकी ग्रहण की स्थिति में वापस आने के इस चक्र को सारोस कहते हैं। एक सारोस चक्र की अवधि 223 चंद्र मास होती है जो कि लगभग 6585.3213 दिन या लगभग 18 वर्ष 11.5 दिन है। भविष्य में सूर्य और चंद्र ग्रहण की गणना करने के लिए इसी चक्र का उपयोग किया जाता है।
चंद्र चक्र को ऐसे समझ सकते हैं कि इसमें 1/3 दिन यानी लगभग 8 घंटे का एक महत्वपूर्ण घटक शामिल होता है जिसका अपना विशेष महत्व होता है। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण प्रत्येक क्रमिक चंद्र चक्र में अगला ग्रहण लगभग 8 घंटे बाद होता है।
इसके परिणामस्वरूप जिस क्षेत्र में ग्रहण नज़र आता है, वह लगभग 120 डिग्री पश्चिम की ओर खिसक जाता है। इसलिए जो ग्रहण किसी एक स्थान से दिखाई देता है, वह अगले चंद्र चक्र में उसी स्थान से दृश्यमान नहीं होगा। लेकिन तीन चंद्र चक्र के बाद अगले ग्रहण का स्थानीय समय वही रहेगा। ऐसा लगभग 54 वर्ष और 1 माह के बाद या लगभग 19756 दिनों के बाद होता है। इस चक्र को ट्रिपल सारोस कहा जाता है।
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साल 2026 में पृथ्वी पर निम्न चार ग्रहण लगेंगे:
वलयाकार सूर्य ग्रहण (17 फरवरी, 2026)
खग्रास चंद्र ग्रहण (03 मार्च, 2026)
पूर्ण सूर्य ग्रहण (12 अगस्त, 2026)
आंशिक चंद्र ग्रहण (28 अगस्त, 2026)
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तिथि |
दिन और दिनांक |
सूर्य ग्रहण की शुरुआत का समय |
सूर्य ग्रहण के समापन का समय |
दृश्यमान स्थान |
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फाल्गुन मास की अमावस्या |
17 फरवरी, 2026, मंगलवार |
दोपहर 03 बजकर 26 मिनट पर |
रात 07 बजकर 58 मिनट पर |
दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, भारतीय महासागर और अंटार्कटिका।यह ग्रहण चिली, अर्जेंटीना, दक्षिण जॉर्जिया, मलावी, नामीबिया, नॉर्वे, फ्रांस, जिम्बाब्वे, मॉरीशियस, मेडागास्कर, तनजानिया, जाम्बिया आदि जैसे देशों में दिखाई देगा। (यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं है।) |
वलयाकार सूर्य ग्रहण (17 फरवरी, 2026)
17 फरवरी, 2026 को भारतीय मानक के अनुसार दोपहर 03 बजकर 26 मिनट से लेकर शाम 07 बजकर 58 मिनट तक फाल्गुन कृष्ण अमावस्या पर दुनिया के कई हिस्सों में वलयाकार ग्रहण लगेगा। यह ग्रहण दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, भारतीय महासागर और अंटार्कटिका। यह ग्रहण चिली, अर्जेंटीना, दक्षिण जॉर्जिया, मलावी, नामीबिया, नॉर्वे, फ्रांस, जिम्बाब्वे, मॉरीशियस, मेडागास्कर, तनजानिया, जाम्बिया आदि जैसे देशों में दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं है।
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तिथि |
दिन और दिनांक |
सूर्य ग्रहण की शुरुआत का समय |
सूर्य ग्रहण के समापन का समय |
दृश्यमान स्थान |
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श्रावण मास की अमावस्या |
12 अगस्त, 2026बुधवार |
रात्रि के 09 बजकर 04 मिनट पर |
13 अगस्त, 2026 को सुबह 01 बजकर 57 मिनट पर |
यूरोप, उत्तर एशिया, उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, उत्तर अमेरिका के ज्यादातर हिस्से और प्रशांत, अटलांटिक एवं आर्कटिक महासागर। ग्रीनलैंड के ज्यादातर हिस्से, आईसलैंड और स्पेन। लेकिन यही ग्रहण आंशिक ग्रहण के रूप में कनाडा, नॉर्वे, ग्रीनलैंड के कुछ हिस्सों में, आईसलैंड, स्वीडन, पोलैंड, डेनमार्क, नीदरलैंड, इटली, कासकाडिया, स्लोवेनिया, यूके, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, फ्रांस, स्विर्ट्जरलैंड, मोनाको, स्पेन के कुछ हिस्सों, अल्जीरिया, पुर्तगाल और मोरक्को में दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होगा। |
पूर्ण सूर्य ग्रहण (12 अगस्त, 2026)
भारतीय सांख्यिकी संस्थान के अनुसार श्रावण अमावस्या पर 12 अगस्त, 2026 को रात को 09 बजकर 04 मिनट 15 सेकंड पर पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा।
यह 13 अगसत, 2026 को सुबह 01 बजकर 57 मिनट पर खत्म होगा। यह ग्रहण विश्व के कई हिस्सों में दिखाई देगा। यह ग्रहण यूरोप, उत्तरी एशिया, उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों, प्रशांत, अटलांटिक और आर्कटिक महासागर में दिखाई देगा।
यह ग्रीनलैंड, आईसलैंड और स्पेन के ज्यादातर हिस्सों में पूर्ण चंद्र ग्रहण के रूप में दिखाई देगा। लेकिन यही ग्रहण कनाडा, नॉर्वे, ग्रीनलैंड के कुछ हिस्सों, आईसलैंड, स्वीडन, पोलैंड, डेनमार्क, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, आयरलैंड, नीदरलैंड, इटली, कैस्काडिया, स्लोवेनिया, यूके, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, मोनाको, स्पेन के कुछ हिस्सों में, अल्ज़ीरिया, पुर्तगाल और मोरक्को आदि में आंशिक ग्रहण के रूप में दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत के किसी भी हिस्से में दृश्यमान नहीं होगा।
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तिथि |
दिन और दिनांक |
सूर्य ग्रहण की शुरुआत का समय |
सूर्य ग्रहण के समापन का समय |
दृश्यमान स्थान |
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फाल्गुन मास की पूर्णिमा |
03 मार्च, 2026, बुधवार |
दोपहर 03 बजकर 20 मिनट पर |
शाम को 06 बजकर 47 मिनट पर |
पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिंक, आर्कटिक, अंटार्कटिक और भारतीय महासागर, क्यूबा, थाईलैंड, उत्तर कोरिया, सिंगापुर, चीन, ईआई सैल्वाडोर, जापान, मैक्सिको, म्यांमार और पूर्वी भारत के शहर। यह आंशिक रूप से ब्राज़ील, अर्जेंटीना, कनाडा के कुछ हिस्सों, चिली, वेनेजुएला, बांग्लादेश, उज्बेकिस्तान और भारत के ज्यादातर हिस्से। |
यह पूर्ण चंद्र ग्रहण 03 मार्च, 2026 को फाल्गुन पूर्णिमा पर दोपहर 03 बजकर 20 मिनट पर लगेगा और शाम को 06 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। यह ग्रहण पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिंक, आर्कटिक, अंटार्कटिक और भारतीय महासागर, क्यूबा, थाईलैंड, उत्तर कोरिया, सिंगापुर, चीन, ईआई सैल्वाडोर, जापान, मैक्सिको, म्यांमार और पूर्वी भारत के शहर। यह आंशिक रूप से ब्राज़ील, अर्जेंटीना, कनाडा के कुछ हिस्सों, चिली, वेनेजुएला, बांग्लादेश, उज्बेकिस्तान और भारत के ज्यादातर हिस्सों में दिखाई देगा।
भारतीय मानक समय के अनुसार यह ग्रहण दोपहर 03 बजकर 20 मिनट पर लगेगा और शाम को 06 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। चूंकि, यह ग्रहण भारत में उगते हुए चांद के रूप में दिखाई देगा। इसलिए सभी क्षेत्रों में ग्रहण को चांद निकलने पर शुरू माना जाएगा। ऐसे में भारत में ग्रहण को समय शाम 06 बजकर 26 मिनट से शाम 06 बजकर 47 मिनट तक लगेगा।
ग्रहण का सूतक: इस ग्रहण का सूतक काल 03 मार्च, 2026 को सुबह 06 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगा।
ग्रहण का राशिफल: यह ग्रहण पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में लगेगा और राशि सिंह है। ऐसे में यह ग्रहण पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और सिंह राशि के लोगों के लिए अत्यधिक अशुभ और दर्दनाक साबित हो सकता है।
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तिथि |
दिन और दिनांक |
सूर्य ग्रहण की शुरुआत का समय |
सूर्य ग्रहण के समापन का समय |
दृश्यमान स्थान |
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श्रावण मास की पूर्णिमा |
28 अगस्त, 2026, शुक्रवार |
सुबह 06 बजकर 55 मिनट पर |
दोपहर को 12 बजकर 30 मिनट पर |
यूरोप, पश्चिम एशिया, अफ्रीका, उत्तर-दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, अंटार्कटिका और भारतीय महासागर। हंगरी, ऑस्ट्रिया, नाइजीरिया, चिली, आंशिक रूप से नीदरलैंड, फ्रांस, वेनेजुएला, इटली, पेरु, मेक्सिको, कनाडा, बेल्जियम, सैल्वाडोर, पुर्तगाल, क्यूबा, मोरक्को, दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड, यूनाइटेड स्टेट्स, अल्जीरिया, स्पेन, ब्राजीज, इंग्लैंड, अर्जेंटीना, गौटामेला, जर्मनी, डोमिनिकन रिपब्लिक, क्रोएशिया, कजाकिस्तान आदि। यह ग्रहण भारत में कहीं भी दिखाई नहीं देगा।
अक्सर ग्रहण को लेकर यह सवाल किया जाता है कि सूतक काल कब शुरू होगा। इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले आप सूतक को समझ लीजिए। सूतक काल एक संवेदनशील समय होता है जिसे अशुभ माना जाता है और इसकी शुरुआत ग्रहण से कुछ घंटे पहले होती है।
उदाहरण के तौर पर सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक चार पहर पहले शुरू होता है जो कि बारह घंटे का होता है और चंद्र ग्रहण के लिए यह तीन पहर पहले शुरू हो जाता है जो कि नौ घंटे का होता है। सूतक काल के दौरान कई नियमों और रीति-रिवाज़ों का पालन किया जाता है। अब सवाल यह उठता है कि सूतक को अशुभ क्यों माना जाता है?
वैज्ञानिक रूप से देखें तो ग्रहण के दौरान जीवन देने वाली शक्तियां सूर्य एवं चंद्रमा कमजोर हो जाते हैं जिस वजह से वातावरण में अशुद्धता और नकारात्मकता बढ़ जाती है। इस कारण से लोगों की इम्यूनिटी कम हो सकती है, स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं और मानसिक एवं भावनात्मक परेशानियां घेर सकती हैं।
ऐसे में सूतक काल और ग्रहण ग्रहण काल के दौरान किसी भी चीज़ का सेवन करने और कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने से मना किया जाता है। ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए मंत्रों का जाप और ध्यान करने की सलाह दी जाती है। सूतक काल के दौरान कई सावधानियां बरती जाती हैं। सूतक काल में मंदिर बंद रहते हैं और इस समयावधि में पूजन स्थल को बंद रखने की सलाह दी जाती है।
ग्रहण 2026 के दौरान भगवान की किसी भी मूर्ति को स्पर्श न करें। सूतक काल के बाद स्नान कर के साफ धुले हुए वस्त्र पहनें और मंदिर में गंगाजल छिड़क कर भगवान के वस्त्र बदलें।
गंगा नदी में स्नान करें। यदि ऐसा कर पाना संभव नहीं है तो आप अपने नहाने के पानी में भी गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान कर सकते हैं।
इस समयावधि में कुछ भी खाना-पीना वर्जित है।
इस समय तेल मालिश करना, पानी पीना, बालों में कंघी करना और दांतों को ब्रश करना वर्जित है।
छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
गर्भवती महिलाओं को धारदार या नुकीली चीज़ों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
ग्रहण के समय घर के अंदर ही रहना चाहिए और कोई भी नया कार्य करने से बचना चाहिए।
इस समय ध्यान और पूजा करना लाभकारी होता है और इससे मानसिक शांति मिलती है।
चूंकि, चंद्र ग्रहण का भावनाओं और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव होता है, इसलिए इस समय शात, प्रसन्न और सहज रहने का प्रयास करें।
इस दौरान हिंसा और क्रोध नहीं करना चाहिए।
घर के अंदर शांति रखें।
ग्रहण काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना बेहतर होता है।
ग्रहण के बाद घर के पूजन स्थल में भगवान की मूर्तियों पर गंगाजल छिड़कें।
गंगाजल से स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनने चाहिए। ऐसा करने से ग्रहण की नकारात्मकता गंगाजल से साफ हो जाती है। संभव हो तो, गंगाजल में स्नान भी कर सकते हैं।
जब ग्रहण खत्म हो जाए, तब ताजा पका हुआ खाना खाएं।
मंदिर में और जरूरतमंद लोगों को दान करें।
राशि अनुसार दान करना चाहिए। इसके अलावा आप अपनी राशि के स्वामी के अनुसार मंत्र जाप कर सकते हैं।
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हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा ये लेख जरूर पसंद आया होगा। ऐसे ही और भी लेख के लिए बने रहिए एस्ट्रोकैंप के साथ। धन्यवाद!
1. सूतक और ग्रहण काल में क्या नहीं करना चाहिए?
इस दौरान हिंसा और क्रोध नहीं करना चाहिए।
2. ग्रहण वाले दिन भोजन कब करना चाहिए?
जब ग्रहण खत्म हो जाए, तब ताजा पका हुआ खाना खाएं।
3. साल 2026 का पहला चंद्र ग्रहण कब लगेगा?
03 मार्च, 2026, बुधवार को।