शुभ मुहूर्त 2022(Shubh Muhurat 2022) का यह लेख आपको साल 2022 में होने वाले सभी महत्वपूर्ण कार्यों के मुहूर्त की पूरी जानकारी और उन शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त की गणना कैसे की जाती है इसकी जानकारी प्रदान करेगा। इसके साथ ही मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं और शुभ मुहूर्त के दौरान किन किन कार्यों को अवश्य किया जाना चाहिए इसकी भी जानकारी आपको इस लेख में दी जाएगी।
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हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करने की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। हर वो कार्य जो हमारी जिंदगी में बहुत महत्व रखता है उसको करने के पहले हम शुभ मुहूर्त देखते हैं या फिर किसी पंडित या ज्योतिषी से ग्रह-नक्षत्रों की गणना करवा कर शुभ मुहूर्त निकलवाते हैं। यदि हम ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखें तो शुभ मुहूर्त वह समय होता है जिस दौरान सौरमंडल में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति किसी जातक या उस कार्य को करने के लिए शुभफलदायी होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि किसी कार्य को हम ग्रह नक्षत्रों की शुभ स्थिति की गणना करने के बाद शुभ समय निकालकर करें तो उस कार्य में हमें विशेष सफलता मिलती है और वह कार्य बिना किसी बाधा के पूरा हो जाता है।
तो आइए सबसे पहले आपको बताते हैं साल 2022 में विवाह नामकरण, विद्यारंभ, मुंडन, गृहप्रवेश, अन्नप्राशन, उपनयन, कर्णवेध और विवाह आदि जैसे संस्कारों को करने के लिए शुभ मुहूर्त कौन-कौन से हैं
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व्यक्ति कोई भी कार्य जब करता है तो आशा रखता है कि उसमें उसे सफलता अवश्य मिलेगी। ज्योतिष के अनुसार किसी काम में अगर आप सफल होना चाहते हैं तो उसके लिए उस कार्य को सही दिन और सही समय का चयन करने के बाद करने से उस कार्य में सफलता मिलती है। इस सही दिन और सही समय को ही शुभ मुहूर्त, शुभ समय, या शुभ घड़ी के नाम से जाना जाता है। शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा आज से नहीं बल्कि वैदिक काल से ही चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि यदि किसी कार्य को शुभ मुहूर्त में किया जाए तो उसमें सफलता मिलने की संभावना रहती है और साथ ही वह कार्य बिना किसी बाधा के भी पूर्ण हो जाता है।
साधारण शब्दों में कहें तो सभी ग्रह और नक्षत्र जब शुभ परिणाम देने वाले होते हैं, तो ऐसे समय को किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत करने के लिए शुभ माना जाता है और इसे ही “शुभ मुहूर्त” कहा जाता है। हालांकि आज के इस भागदौड़ वाले जीवन में या कह सकते हैं कि इस मॉडर्न युग में व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार समय का चयन करता है ना की ग्रह नक्षत्रों की चाल का आकलन करने के बाद शुभ समय में। आपने देखा होगा कि कड़ी मेहनत, अच्छी प्लानिंग और सही नियत होने के बावजूद भी कभी-कभी हमें किसी काम में सफलता नहीं मिलती और इसका मुख्य कारण यही है कि हम उस कार्य को बिना शुभ मुहूर्त देखे ही शुरु कर देते हैं। शुभ मुहूर्त के चयन के विषय में या इसके महत्व के विषय में हमें शास्त्रों में भी कई जगह पढ़ने को मिलता है। शुभ मुहूर्त के चुनाव से पहले एक आम व्यक्ति के लिए यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है कि कोई भी समय शुभ है या अशुभ यह कैसे पता करें।
तो आईये जानते है कि कैसे कोई भी एक समय शुभ मुहूर्त बनता है-
ज्योतिष शास्त्र में हर विषय के बारे में विस्तार रूप से जानकारी दी गई है यदि हम बात करें शुभ मुहूर्त की तो उसे निकालने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है जैसे कि “तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण, नव ग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिक मास, शुक्र और गुरु अस्त, शुभ योग, अशुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, और राहु काल, आदि”। इन सभी महत्वपूर्ण योगों की गणना करने के बाद इनके कुल योग से एक शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। शास्त्रों के अनुसार अशुभ योग के दौरान बनने वाले मुहूर्त में यदि कोई कार्य किया जाए तो वह ना तो पूरी सफल होता है और ना ही आप जिस सोच से उस कार्य को कर रहे हैं वह पूर्ण होता है।
हिन्दू धर्म में मुहूर्त को एक समय मापन की इकाई माना गया है। यदि पंचांग के अनुसार देखें तो एक दिन में 24 घंटा होता है, जिसमें कुल 30 मुहूर्त निकलते हैं। हर एक मुहूर्त लगभग 48 मिनट का होता है। सीधे शब्दों में कहें तो एक मुहूर्त दो घड़ी के या करीब-करीब 48 मिनट के बराबर होता है।
तो चलिए अब आपको बताते हैं कि मुहूर्त के कितने प्रकार के होते हैं और उनमें से कौन से मुहूर्त शुभ और कौन से अशुभ होते हैं -
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हिन्दू पंचांग के अनुसार कुल 30 मुहूर्त होते हैं, जिसमें पहला मुहूर्त “रुद्र” है, जो प्रात: 6 बजे शुरू होता है और यह एक अशुभ मुहूर्त माना गया है। उसके बाद दूसरा मुहूर्त “आहि” है, यह भी एक अशुभ मुहूर्त ही है जो रूद्र मुहूर्त के 48 मिनट बाद शुरू होता है। इसके बाद के सभी मुहूर्त और उसका गुण कैसा होता है इसकी जानकारी आपको नीचे तालिका के माध्यम से दी जा रही है। बता दें कि इन सभी का समय भी 48-48 मिनट का ही होता है।
| मुहूर्त के नाम | गुण |
| रूद्र | अशुभ |
| अहि | अशुभ |
| मित्र | शुभ |
| पितृ | अशुभ |
| वसु | शुभ |
| वाराह | शुभ |
| विश्वेदेवा | शुभ |
| विधि | शुभ (सोमवार और शुक्रवार छोड़कर) |
| सतमुखी | शुभ |
| पुरुहूत | अशुभ |
| वाहिनी | अशुभ |
| नक्तनकरा | अशुभ |
| वरुण | शुभ |
| अर्यमा | शुभ (रविवार छोड़कर) |
| भग | अशुभ |
| गिरीश | अशुभ |
| अजपाद | अशुभ |
| अहिर-बुध्न्य | शुभ |
| पुष्य | शुभ |
| अश्विनी | शुभ |
| यम | अशुभ |
| अग्नि | शुभ |
| विधातृ | शुभ |
| कण्ड | शुभ |
| अदिति | शुभ |
| जीव/अमृत | अति शुभ |
| विष्णु | शुभ |
| द्युमद्गद्युति | शुभ |
| ब्रह्म | अति शुभ |
| समुद्रम | शुभ |
किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के लिए पंचांग के पांच अंग की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसकी गणना पर विशेष ध्यान दिया जाता है। ये पांच अंग हैं- “तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण”। तो चलिए आपको बताते हैं पंचांग के इन पांच अंगों के बारे में विस्तार से-
पंचांग के अनुसार एक महीने में कुल मिलाकर 30 तिथियां होती हैं, जिनमें से 15 कृष्ण पक्ष की और तो 15 शुक्ल पक्ष की तिथियाँ होती हैं। वैदिक पंचांग में सबसे महत्वपूर्ण है तिथि, जो एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक व्याप्त रहती है। कभी-कभी दो तिथियां एक ही दिन में आ जाती हैं। इनमें से जो तिथि सूर्योदय नहीं देख पाती उसे “क्षय तिथि” कहते हैं, और जो तिथि दो सूर्योदय तक व्याप्त रहती है, उसे “वृद्धि तिथि” कहते हैं। आईये आपको बताते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की सभी तिथियों के नाम।
पंचांग के अनुसार एक सप्ताह में कुल सात वार यानि कि सात दिन होते हैं। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार। सभी वार की अपनी एक विशेष और अलग प्रकृति होती है और किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए शुभ मुहूर्त की गणना के समय वार/दिन को भी विशेष महत्व दिया जाता है। सप्ताह के सातों दिन में से मंगलवार के दिन कोई विशेष धार्मिक कार्य करना वर्जित होता है। वहीं रविवार और गुरुवार का दिन कई मायनों में श्रेष्ठ, तो गुरुवार का दिन सर्वश्रेष्ठ होता है।
पंचांग के अनुसार नक्षत्र की कुल संख्या 27 है। आईये आपको सभी नक्षत्रों और उनके स्वामी के नाम बताते हैं -
नक्षत्रों के नाम - अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।
नक्षत्रों के स्वामी ग्रह -
पंचांग में चौथा और महत्वपूर्ण बिंदु है गुण। सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर कुल 27 योग बताए गए हैं। किसी मुहूर्त के दौरान इन योगों का अपना-अपना अलग महत्व होता है। इन सभी 27 योगों में से 9 योग बेहद अशुभ, तो वहीं इन 9 के अलावा बाकि सभी को शुभ भी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अशुभ योगों में कोई भी शुभ काम करना वर्जित होता है। आईये आपको बताते हैं सभी 27 योगों और उनके स्वभाव के विषय में-
योग के नाम - प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, धृति, वृद्धि, ध्रुव, हर्षण, सिद्धि, वरीयान, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र , विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिघ, वैधृति
योग के गुण -
शुभ योग - प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, धृति, वृद्धि, ध्रुव, हर्षण, सिद्धि, वरीयान, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र
अशुभ योग - विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिघ, वैधृति
शुभ मुहूर्त 2022 की गणना के समय करण की स्थिति का आकलन करना भी बहुत ज़रूरी होता है। एक तिथि में दो करण होते हैं, या फिर इसे ऐसे समझ सकते हैं कि तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। तिथि के पूर्वार्ध में एक करण होता है और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे में पंचांग के अनुसार, कुल मिलाकर 11 करण होते हैं, जिनमें से चार करण की स्थिर प्रकृति के होते है, तो शेष 7 करण चर प्रकृति के होते हैं। आईये जानते हैं सभी 11 करण और उनकी प्रकृति के बारे में:
करण के नाम - किस्तुघ्न, शकुनि, नाग, चतुष्पाद, बव, बालव, कौलव, गर, तैतिल, वणिज, विष्टि/भद्रा
करण की प्रकृति -
स्थिर करण - किस्तुघ्न, शकुनि, नाग, चतुष्पाद
चर करण - बव, बालव, कौलव, गर, तैतिल, वणिज, विष्टि/भद्रा
किसी भी नए या मांगलिक कार्य की शुरुआत के लिए सभी करणों में से विष्टि और भद्रा करण की अशुभ प्रकृति के कारण इस दौरान किसी भी काम को करना वर्जित माना जाता है।
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हिंदू धर्म में किसी भी अच्छे काम को करने के लिए शुभ मुहूर्त की जरूरत होती है। लोग किसी पंडित या ज्योतिषी से शुभ मुहूर्त निकलवाते हैं, ताकि उनका वह कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो जाए। तो चलिए आपको बताते हैं कि शुभ मुहूर्त के दौरान आप कौन-कौन से कार्य कर सकते हैं- सबसे पहले किसी भी शुभ मुहूर्त में आप नौकरी, व्यापार आदि जैसे किसी भी आए प्राप्ति के साधनों की शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा नामकरण, मुंडन, विवाह, विद्यारंभ आदि जैसे महत्वपूर्ण संस्कारों को भी आप शुभ मुहूर्त में ही संपन्न करें ताकि इससे आपको भविष्य में बेहतर फल मिल सके। किसी भी शुभ मुहूर्त में दुकान-मकान की नींव रख सकते हैं, गृह प्रवेश कर सकते हैं, चूल्हा भट्टी आदि का शुभारंभ भी कर सकते हैं।
आजकल लोग किसी परीक्षा, प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन पत्र भी शुभ मुहूर्त के दौरान ही भरते हैं ताकि उस परीक्षा में वह सफल हो सके। किसी भी यात्रा और तीर्थ आदि पर जाने के लिए भी शुभ मुहूर्त का ही चयन किया जाना चाहिए, जिससे कि शुभ मुहूर्त के प्रभाव से आपकी यात्रा सकुशल हो। स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना और पहनना भी शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। इसके अलावा बहुत सारे लोग पवित्रता हेतु किए जाने वाले स्नान को भी शुभ मुहूर्त में ही करते हैं। यदि आप वाहन खरीदना चाहते हैं कोई यात्रा आरंभ करना चाहते हैं, तो उसके लिए भी शुभ मुहूर्त का चयन करना ही अच्छा होता है। ऊपर बताई गई सारी चीजों को यदि आप शुभ मुहूर्त में करते हैं, तो इससे आपको भविष्य में अच्छे फल प्राप्त होते हैं और आपके द्वारा जिस सोच से उस कार्य को किया जा रहा है वह भी संपूर्ण होता है।
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आशा है कि इस लेख में शुभ मुहूर्त 2022 के बारे में दी गयी जानकारी आपको पसंद आयी होगी ।
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