जनेऊ मुहूर्त 2020 (Janeu Muhurat 2020) - हिन्दू 16 संस्कारों में यह दसवाँ संस्कार है जो कि हिन्दू जीवन पद्धति के लिए महत्वपूर्ण संस्कार है। इसे इसलिए हम लेकर आए हैं वर्ष 2020 में पड़ने वाले सभी उपनयन मुहूर्त की विस्तृत सूची। आप अपनी सुविधा के अनुसार, उपनयन मुहूर्त की तिथि चुन सकते हैं।
| दिनांक | वार | तिथि | नक्षत्र | उपनयन महूर्त की समयावधि |
| 15 जनवरी | बुधवार | माघ कृ. पंचमी | उ.फाल्गुनी | 07:15-12:10 |
| 27 जनवरी | सोमवार | माघ शु. तृतीया | शतभिषा | 07:12-14:37 |
| 29 जनवरी | बुधवार | माघ शु. चतुर्थी | पूर्वाभाद्रपद | 10:46-14:29 |
| 30 जनवरी | गुरुवार | माघ शु. पंचमी | उ.भाद्रपद | 07:11-13:20 |
| 26 फरवरी | बुधवार | फाल्गुन शु. तृतीया | उ.भाद्रपद | 06:50-14:53 |
| 28 फरवरी | शुक्रवार | फाल्गुन शु. पंचमी | अश्विनी | 06:48-14:45 |
| 11 मार्च | बुधवार | चैत्र कृ. द्वितीया | हस्त | 11:42-13:58 |
| 13 मार्च | शुक्रवार | चैत्र कृ. चतुर्थी | स्वाति | 08:51-13:50 |
| 26 मार्च | गुरुवार | चैत्र शु. द्वितीया | रेवती | 06:18-15:20 |
| 3 अप्रैल | शुक्रवार | चैत्र शु. दशमी | पुष्य | 06:09-13:57 |
| 9 अप्रैल | गुरुवार | वैशाख कृ. द्वितीया | स्वाति | 06:02-14:23 |
| 26 अप्रैल | रविवार | वैशाख शु. तृतीया | रोहिणी | 05:45-13:23 |
| 3 मई | रविवार | वैशाख शु. दशमी | पूर्वाफाल्गुनी | 05:39-12:08 |
| 4 मई | सोमवार | वैशाख शु. एकादशी | उ.फाल्गुनी | 06:13-15:04 |
| 25 मई | सोमवार | ज्येष्ठ शु. तृतीया | रेवती | 07:54-15:57 |
| 27 मई | बुधवार | ज्येष्ठ शु. पंचमी | पुनर्वसु | 07:28-15:49 |
उपनयन संस्कार को जनेऊ संस्कार अथवा यज्ञोपवीत संस्कार कहते हैं। यह हिन्दू संस्कृति में होने वाले सोलह संस्कारों में से एक है। इस संस्कार के तहत जब कोई बालक अपने बाल्य काल से युवावस्था में प्रवेश करता है उस दौरान उपनयन संस्कार के तहत उसके शरीर पर तीन सूत्रों से वाला धागा (जनेऊ) बाएँ कंधे से दाएँ बाजू की ओर पहनाया जाता है।
सनातन धर्म में उपनयन का अर्थ ईश्वर के समीप जाने से है। यज्ञोपवीत संस्कृत का शब्द है जो शब्दों के समूह से मिलकर बना है- यज्ञ और उपवीत, जिसका अर्थ होता है यज्ञ व हवन कर अधिकारों की प्राप्ति करना। यहाँ अधिकार से तात्पर्य पूजा पाठ करना एवं ज्ञान एवं विद्या प्राप्त करने से है। इस संस्कार के बाद बालक का दूसरा जन्म होता है। जनेऊ के बाद ही बालक धर्म में प्रवेश माना जाता है।
जनेऊ मुहूर्त 2020 के इस लेख के अनुसार सनातन परंपरा में प्रत्येक शुभ कार्य को एक निर्धारित शुभ समय में किया जाता है। इस शुभ समय को मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य सफल होता है, जिस उद्देश्य के लिए कार्य किया जाता है वह उद्देश्य पूर्ण होता है। चूंकि उपनयन संस्कार भी एक शुभ कार्य है। इसलिए जनेऊ संस्कार के लिए मुहूर्त की आवश्यकता पड़ती है।
उपनयन मुहूर्त (2020) के लिए माघ माह से लेकर ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली कुछ विशेष तिथियाँ शुभ होती हैं। इनमें प्रथमा, चतुर्थी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या या फिर पूर्णिमा तिथि शामिल हैं। वहीं बुध, गुरुवार और शुक्रवार दिन उपनयम मुहूर्त के लिए सर्वोत्तम होते हैं। इसके अलावा रविवार मध्यम तथा सोमवार का दिन संस्कार के लिए कम योग्य माना जाता है। जबकि मंगलवार और शनिवार के उपनयन मुहूर्त के लिए शुभ नहीं होते हैं।
नक्षत्रों हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, घनिष्ठा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, श्रवण एवं रेवती इस संस्कार के लिए शुभ नक्षत्र माने जाते हैं। एक दूसरे नियम के अनुसार भरणी, कृतिका, मघा, विशाखा और ज्येष्ठा को छोड़कर सभी नक्षत्रों में उपनयन संस्कार संपन्न किया जा सकता है।
जनेऊ मुहूर्त 2020 के माध्यम से हम आपको बताते हैं कि उपनयन संस्कार कब होता है। सामान्य रूप से किसी बालक किशोरावस्था में प्रवेश करने पर ही जनेऊ संस्कार होता है। किंतु हिन्दू धर्म में व्याप्त वर्ण व्यवस्था के आधार पर इसे अलग अलग उम्र में किया जाता है। उदाहरण के तौर एक ब्राह्मण कुल में जन्मे बच्चे का उपनयन संस्कार 7 वर्ष की आयु में होगा। वहीं छत्रिय और वैश्य समाज के बालकों का यज्ञोपवीत क्रमशः 11 एवं 13 वर्ष की आयु में करने का विधान है। विवाह योग्य आयु के पूर्व ही यह संस्कार हो जाना चाहिए।
जनेऊ तीन सूत्रों का कच्चा धागा होता है जिसे शरीर में इस तरह से पहना चाहता है कि वह बायें कंधे से होकर दाहिने हाथ की कलाई तक पहुँचता हो।
तीन सूत्र क्यों - इसमें तीन सूत्र त्रिदेव का प्रतीक हैं। तीन सूत्र पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषिऋण को दर्शाते हैं। ये तीन सूत्र तीन गुण सत्व, रज और तम गुण को दर्शाते हैं। तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक हैं। ये तीन सूत्र चार आश्रमों में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ एवं वानप्रस्थ के प्रतीक हैं क्योंकि चौथे आश्रम सन्यास में इसे उतार दिया जाता है।
9 तार - जनेऊ में एक-एक सूत्र में तीन-तीन तार होते हैं यानि कुल नौ तार। ये नौ संख्या नवग्रह के अलावा शरीर के बाह्य छिद्रों को भी दर्शाते हैं। जैसे एक मुख, दो नासिका, दो आँख, दो कान, मल मूत्र के द्वार इन सभी छिद्रों को मिलाएँ तो कुल नौ छिद्र होते हैं।
5 गाँठ - जनेऊ में पाँच गाँठें लगाई जाती हैं जो पाँच यज्ञों, पाँच ज्ञानेंद्रियों और पंच कर्मों और पंच महाभूतों का प्रतीक हैं।
जनेऊ की लंबाई - जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल की होती है। इसका अर्थ होता है कि जनेऊ पहनने वाले व्यक्ति को 64 कलाओं और 32 प्रकार की विद्याओं को सीखना चाहिए। 32 प्रकार की विद्याओं में चार वेद, छह वेदांग, षड् दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ एवं नौ अरण्यक। जबकि 64 कलाओं वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि शामिल हैं।
मेखला, कोपीन एवं दंड - मेखला कमर में बांधने योग्य नाड़े समान सूत्र को कहा जाता है। इसे मुंज और करधनी के नाम से भी जाना जाता है। जबकि कोपीन लंगोट को कहते हैं। दंड के लिए लाठी रखी जाती है।
हिन्दू धर्म में होने वाले संस्कार यूँ ही नहीं किए जाते, बल्कि उनके पीछे एक विशेष महत्व जुड़ा होता है। ऐसे ही उपनयन संस्कार का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि उपनयन संस्कार से किसी बालक के पिछले जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। धार्मिक दृष्टि से ऐसा कहते हैं कि जनेऊ में उपयोग होने वाले 3 सूत्र ब्रह्मा, विष्णु और मेहश - त्रिदेव के प्रतीक हैं। इसलिए तो जनेऊ को अति पवित्र माना जाता है।
यदि यह भूलवश अपवित्र हो जाए तो जनेऊ को विधि पूर्वक बदल लिया जाता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो कोई जनेऊ धारण करता है उसे नौ ग्रहों का आशीर्वाद मिलता है। दरअस्ल जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं और उन सूत्रों में नौ धागे होते हैं जो नवग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु) के प्रतीक हैं।
जनेऊ मुहूर्त 2020: उपनयन संस्कार से पूर्व बालक का मुंडन कराया जाता है। उपनयन मुहूर्त के दिन लड़के को सबसे पहले स्नान करवाया जाता है। उसके पश्चात् उसके शरीर और सिर पर चंदन का लेप लगाया जाता है। इसके पश्चात् हवन की तैयारी की जाती है। इसके बाद बालक को अधोवस्त्र और माला पहनाकर गणेश पूजा एवं यज्ञ के लिए बिठाया जाता है। फिर दस हज़ार बाद गायत्री मंत्र का जाप कर देवताओं का आवाह्न किया जाता है।
इसके बाद बालक शास्त्र शिक्षा एवं व्रतों का पालन करने के लिए वचन लिया जाता है। इसके बाद बालक को उसके उम्र के लड़कों के साथ बिठाकर उसे चूरमा खिलाया जाता है। बालक पुनः स्नान कराया जाता है। फिर गुरु, पिता अथवा बड़े के द्वारा उसे गायत्री मंत्र सुनाया जाता है और बालक यह बताया जाता है कि आज से तुम ब्राह्मण हुए।
इस प्रक्रिया के बाद बालक को एक दंड दिया जाता है तथा मेखला से कंदोरा बांधा जाता है। अब बालक उपस्थित लोगों से भीक्षा मांगता है। शाम को खाना खाने के पश्चात् दंड को कंधे पर रखकर घर से भागता है और कहता है कि “मैं पढ़ने के लिए काशी जा रहा हूँ”। बाद में कुछ लोग शादी का लालच देकर पकड़ लाते हैं। इसके बाद से बालक ब्राह्मण मान लिया जाता है।
हम आशा करते हैं कि उपनयन मुहूर्त 2020 से संबंधित यह लेख आपके लिए कारगर साबित होगा।
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